केंद्र सरकार आईटी क्षेत्र के अनुकूल माहौल तैयार करने के लिए उत्सुक दिखाई देती है। ताजा आम बजट में केंद्र का इरादा झलकता है। सवाल उठता है कि क्या वित्त मंत्री के कदम इस क्षेत्र में तुरंत कोई हलचल पैदा कर पाएंगे? आईटी को आगे बढ़ाना नरेंद्र मोदी सरकार की ज्यादातर थीमों के लिहाज से महत्वपूर्ण है, जैसे- आर्थिक विकास और 'मेक इन इंडिया' और 'डिजिटल इंडिया'। वित्त मंत्री अरुण जेटली की ओर से पेश बजट की केंद्रीय थीम विकास को गति देना है। सूचना प्रौद्योगिकी के संदर्भ में भी उन्होंने अपने बजट प्रावधानों के जरिए यही संदेश दिया है- कहीं प्रत्यक्ष रूप से तो कहीं परोक्ष ढंग से। हालाँकि सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए कोई बड़ी घोषणाएँ आम बजट में नहीं की गई हैं, जैसे करों में बड़ी राहत या किसी खास किस्म का प्रोत्साहन दिया जाना। लेकिन नए उपक्रमों (स्टार्ट-अप्स) को बढ़ावा देने के लिए एक हजार करोड़ रुपए के कोष की घोषणा करके उन्होंने इस उद्योग में नई जान फूंकने की कोशिश ज़रूर की है। कई अन्य बजट प्रावधान भी किसी न किसी रूप में आईटी उद्योग की मदद करेंगे। हालाँकि पिछले बजट में इसी मद पर किए गए दस हजार करोड़ रुपए के प्रावधान पर किस तरह अमल किया गया है, इस बारे में इस बार के बजट में ब्यौरा उपलब्ध नहीं था।
भारत में जिस तरह ईकॉमर्स कंपनियों और उद्यमशीलता का दौर चला है, वह किसी सुखद आश्चर्य की तरह है। इंटरनेट को माध्यम बनाकर सैंकड़ों छोटी कंपनियों ने बड़ा नाम कमाया है और रातोंरात कुछ करोड़ रुपए से कुछ हजार करोड़ रुपए तक का रास्ता तय कर लिया है। फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, यात्रा, ओएलएक्स, क्विकर, बुक माइ शो, रेड बस, नौकरी, गाना जैसी दर्जनों कंपनियों ने अपनी कामयाबी से प्रभावित किया है। जाहिर है, देश में उद्यमशीलता की प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है और बाजार की स्थितियाँ भी उसके अनुकूल हैं। इस घटनाक्रम को केंद्र सरकार बड़ी दिलचस्पी के साथ देख रही है क्योंकि ये छोटे उपक्रम देश में उद्यमशीलता की संस्कृति को बढ़ावा दे सकते हैं जो आर्थिक विकास के हमारे लक्ष्य में मददगार सिद्ध होगा। स्टार्ट अप कम निवेश में अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराने में मदद कर सकते हैं, उत्पादों तथा सेवाओं का उपयोगी वितरण नेटवर्क तैयार कर सकते हैं और निर्यात के लक्ष्यों में भी कुछ न कुछ योगदान दे सकते हैं। उन्हें बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है और श्री जेटली ने इस तथ्य को नजरंदाज नहीं किया है।
स्टार्ट अप फूंक रहे हैं नई जान
आम बजट में नए उद्यमों को शुरूआती धनराशि मुहैया कराने के लिए 1000 करोड़ रुपए की राशि आवंटित कर वित्त मंत्री ने सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की एक अहम जरूरत को पूरा किया है। सॉफ्टवेयर कंपनियों के संगठन नासकॉम के अनुसार इस समय देश में 3100 स्टार्ट अप कंपनियाँ सक्रिय हैं और इस सूची में हर साल करीब 800 नई कंपनियाँ जुड़ जाती हैं। इन्हें अब तक देश-विदेश से करीब 2.3 अरब डॉलर (करीब 14,200 करोड़ रुपए) का निवेश प्राप्त हो चुका है। इसे देखते हुए जाहिर है, केंद्र की ओर से शुरू किए गए कोष की राशि बहुत अधिक नहीं है लेकिन श्री जेटली ने सही दिशा में, सकारात्मक शुरूआती कदम उठाया है। आने वाले वर्षों में यह राशि बढ़ भी सकती है और इससे औद्योगिक समूह तथा वित्तीय संस्थान भी स्टार्ट-अप कंपनियों को सहयोग करने के लिए प्रेरित होंगे। टाटा समूह और इन्फोसिस पहले ही कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों में निवेश की पहल कर चुके हैं। याद रहे, श्री जेटली ने अपने जुलाई 2014 के बजट भाषण में भी स्टार्ट अब कंपनियों को अंशधारिता, आसान शर्तों वाले ऋणों और जोखिम पूंजी के तौर पर मदद देने के लिए 10,000 करोड़ रुपए की राशि मुहैया कराने की घोषणा की थी।
वित्त मंत्री ऐसी कंपनियों के जरिए करीब एक लाख नए रोजगार पैदा करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। मूलभूत लक्ष्य है- भारतीय युवाओं को रोजगार तलाशने वालों की बजाए रोजगार देने वालों में तब्दील करना। आम तौर पर छोटी स्टार्ट अप कंपनियाँ युवाओं द्वारा खड़ी की जाती हैं जिन्हें प्रायः उद्यमशीलता का पहले से कोई अनुभव नहीं होता। अगर अपना कारोबार संभालने के लिए जरूरी प्रशिक्षण, अनुभवी व्यवसायियों का मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग मिल जाए तो युवा उद्यमियों की कामयाबी के आसार बेहतर हो सकते हैं। बजट प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर एक स्वरोजगार और प्रतिभा प्रयोग तंत्र स्थापित करने जा रही है। इस साल के बजट में तकनीकी स्टार्ट अप कंपनियों की रॉयल्टी और अन्य संबंधित करों को 25 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया गया है। वित्त मंत्री का संदेश स्पष्ट है- सरकार देश में उद्यमशीलता के अनुकूल स्थितियाँ पैदा करना चाहती है।
अहमियत आईटी उद्योग की
करीब 150 अरब डॉलर का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में खासी अहमियत रखता है। सॉफ्टवेयर, परामर्श सेवाएँ और आउटसोर्सिंग इसके अहम अवयव हैं। धीरे-धीरे हार्डवेयर विनिर्माण का क्षेत्र भी उभर रहा है। इस साल के आम बजट में वित्त मंत्री ने आईटी उत्पादों पर चली आ रहे विशेष अतिरिक्त शुल्क को हटाने की घोषणा की है जो हार्डवेयर विनिर्माताओं को खासी राहत देगा। हालाँकि पर्सनल कंप्यूटरों (पीसी) के विनिर्माण को इस छूट के दायरे से बाहर रखा गया है। कल-पुर्जों के आयात से सीमा-शुल्क को हटाया जाना भी एक अच्छा कदम है। हालाँकि 'मेक इन इंडिया' के दौर में पीसी विनिर्माताओं के लिए किसी खास प्रोत्साहन या राहत की घोषणा न करना थोड़ा निराशाजनक माना जा रहा है।
विदहोल्डिंग टैक्स घटाए जाने से आईटी उद्योग पर अच्छा असर पड़ेगा जो रॉयल्टी पर कर को 25 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी तक ले आएगा। इसी तरह कंपनी कर में होने वाली कटौतियों का लाभ दूसरे उद्योगों के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी को भी मिलेगा। सरकार अगले चार साल में कंपनी कर को 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी पर लाने जा रही है जो सकारात्मक कारोबारी माहौल विकसित करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प के अनुकूल है। यही बात शोध और विकास (आर एंड डी) और नवाचार संबंधी निवेश पर कर को घटाकर 10 फीसदी तक ले आए जाने पर भी लागू होती है जो नई तकनीकों के हस्तांतरण के साथ-साथ नवोन्मेष को बढ़ावा देगा। गार को दो साल के लिए टाले जाने और घरेलू हस्तांतरण मूल्य की सीमा को पाँच करोड़ रुपए से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपए तक ले जाने का ऐलान भी दूसरे उद्योगों के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के पक्ष में है।
हालाँकि आईटी उद्योग की कुछ अन्य मांगों को वित्त मंत्री ने नजरंदाज कर दिया है, जैसे एंजेल फंडिंग (स्टार्ट अप में बाहरी निवेश) को करमुक्त करना और अनेक उत्पादों पर दोहरे कराधान की समस्या से छुटकारा दिलाना। कुछ आईटी उत्पादों पर सेवा कर और बिक्री कर दोनों लागू होते हैं और देश के कर ढाँचे को सरल तथा कारपोरेट माहौल के अनुकूल बनाने के सरकार के इरादे के मद्देनजर इस तरफ ध्यान दिए जाने की जरूरत है। मोटे तौर पर सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग ने बजट प्रावधानों को 'सही दिशा में कदम' उठाए गए मजबूत कदम के तौर पर देखा है। हालाँकि भविष्य में उसे वित्त मंत्री से कुछ और ठोस रियायतें पाने की अपेक्षा है