मॉरीशस में एक दुकानदार से बात चल रही थी। उन्होंने बताया कि जब अमिताभ बच्चन यहाँ आए तो टेलीविजन वालों ने उनसे पूछा कि आपको मॉरीशस आकर कैसा लगा? अमिताभ ने जवाबी सवाल पूछा कि 'क्या मैं भारत में नहीं हूँ?' कम शब्दों में कितना कुछ कह गए अमिताभ! यूँ मॉरीशस जाने वाले अधिकांश भारतीयों की यही प्रतिक्रिया होती है। 'छोटे भारत' के रूप में प्रसिद्ध इस देश पर भारतीय संस्कृति और भारतीयता की गहरी छाप है। आखिर क्यों न हो, यहाँ साठ फीसदी से ज्यादा भारतीय हैं और राजनीति तथा समाज पर उनकी गहरी पकड़ है। क्या भोजन, क्या पहनावा, क्या रीति-रिवाज, क्या धर्म, क्या संगीत, क्या मनोरंजन.. भारत हर कहीं दिखता है। फलूदे से लेकर समोसा और तंदूरी नान से लेकर मसाला डोसा तक आसानी से मिलेगा। आप न भारतीय फिल्मों से वंचित रहेंगे और न ही अपने टेलीविजन चैनलों पर छाए सास-बहू के सीरियलों से। लेकिन जो एक चीज मन पर सबसे गहरी छाप छोड़ती है, वह है भारत के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा। भारतीयों से मिलने पर उनका लगाव छिपाए नहीं छिपता। विश्व हिंदी सचिवालय की तरफ से आयोजित आईसीटी सम्मेलन और कार्यशाला के दौरान मॉरीशस ब्रॉडकास्टिंग कारपोरेशन के टीवी पत्रकारों ने हमसे बातचीत की थी। वहीं एक कैमरामैन के साथ चर्चा होने लगी। वे बोले कि भारत से कोई भी आता है तो हमें बहुत अच्छा लगता है। मैंने जवाब दिया कि मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी आदि देशों से आने वाले भारतवंशियों के प्रति हमारे मन में भी उसी किस्म का लगाव है। उनका आना भारत में भी बड़ी खबर बनता है और अखबारों तथा टेलीविजन पर चर्चित होता है। "जब आप अपनी जड़ों की तलाश में वहाँ आते हैं, तो हम भी अपने बिछड़े हुए भाइयों के साथ कभी टूट गई रिश्तों की अदृश्य कड़ी तलाश रहे होते हैं।" कुछ क्षण बाद मैंने देखा, कैमरामैन की आँखों से आँसू टपक रहे हैं। मेरा भी मन भर आया। लगा शब्द सूखते जा रहे हैं। कोई अदृश्य कड़ी थी जो हमें जोड़ रही थी। इस भावना को गले मिलने के सिवा किसी भी दूसरे ढंग से अभिव्यक्त करना मुश्किल था।
मॉरीशस हम भारतीयों के लिए किसी अन्य सामान्य पर्यटन गंतव्य जैसा नहीं है। यदि धार्मिक, वैवाहिक, कारोबारी और स्वास्थ्य पर्यटन की तर्ज पर 'भावनात्मक पर्यटन' जैसी भी कोई चीज होती तो हमारे लिए मॉरीशस शीर्ष पर्यटन स्थल होता। हालाँकि आज भी वह भारत से हनीमून पर जाने वाले जोड़ों की पहली पसंद है।
उद्घोषणा और आशंकाएँ
अब एक छोटी सी घटना। हमारा विमान मॉरीशस के सर शिवसागर रामगुलाम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरता, उससे कुछ पहले उद्घोषणा हुई कि भारत से आए बालेन्दु दाधीच और ललित कुमार के लिए एक सूचना है। वे विमान छोड़ने से पहले हमारे स्टाफ से संपर्क कर लें। ललित कुमार, जो 'कविता कोश' के संपादक हैं, दिल्ली से मेरे साथ ही रवाना हुए थे। आव्रजन, सीमा शुल्क औक सुरक्षा जैसे पहलुओं से जुड़ी न जाने कितनी आशंकाएँ मस्तिष्क में गूंज गईं। पता नहीं विदेशी भूमि पर कौनसी आफत हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। पाँच साल पहले न्यूयॉर्क के जॉन एफ कैनेडी हवाई अड्डे की याद हो आई जब मेरी खास तौर पर स्क्रीनिंग की गई थी। लगभग वैसी ही, जैसी पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की हुई थी। विमान के सभी यात्रियों में से हम चार को अलग ले जाया गया और 'जमकर' तलाशी ली गई। सिएटल (वाशिंगटन) में तो मैं पुलिस की गाड़ी में भी सैर कर आया था। सिएटल पुलिस को लगा था कि कौन जाने में मैं किसी विध्वंसक गतिविधि को अंजाम देने वाला होऊँ। वह किस्सा फिर कभी सुनाएँगे, लेकिन मॉरीशस में उतरने से ठीक पहले हुई उद्घोषणा ने बहुत सी यादें ताजा कर दीं। यूँ मस्तिष्क पर जोर देने पर भी ये बातें याद नहीं आतीं मगर यहाँ न जाने क्यों स्मृति अचानक तीव्र हो उठी थी। ललित भी आशंकित लग रहे थे। खैर.. जो होगा देखा जाएगा।
बहरहाल, हवाई अड्डे पर उतरने के बाद जो कुछ देखा उससे न सिर्फ अपनी नासमझी पर पछतावा हुआ बल्कि आगे होने वाले अनुभवों का संकेत भी मिल गया। वह अमेरिका था, यह मॉरीशस है- दूसरा भारत। यह कोई पराया देश नहीं है बल्कि अपने ही लोगों का देश है। पता चला कि विश्व हिंदी सचिवालय के अधिकारियों ने वीआईपी लाउंज में हमारे कुछ देर ठहरने की व्यवस्था की थी और उद्घोषणा इसी संदर्भ में थी। वहाँ स्वल्पाहार से निवृत्त होते-होते हमारी आव्रजन संबंधी औपचारिकताएँ भी पूरी हो चुकी थीं और सामान भी विमान से हमारे पास पहुँचाया जा चुका था। जीवन में पहली बार ऐसी मेहमाननवाजी देखी। सीमा शुल्क विभाग के जो अधिकारी औपचारिकताएँ पूरी करने में लगे थे, वे भी भारतवंशी निकले। फिर क्या था, बातों ही बातों में बातें चल निकलीं। अगले कुछ मिनट में हमने मॉरीशस और उन्होंने भारत के कुछ पहलू कुछ जान-समझ लिए। वहीं देखा मॉरीशस की कार्यवाहक राष्ट्रपति श्रीमती मोनीक एग्नेस ओहसान बेलेप्यू को, जो किसी भी तरह के ताम-झाम या अफसरों की भीड़ के बिना पास की कुर्सी पर बैठीं अपने मेहमानों का इंतजार कर रही थीं। देखते ही देखते उनके मेहमान आ गए और वे गर्मजोशी के साथ उनके गले मिलने लगीं। हँसी, ठहाके और उलाहने गूंजने लगे। मैंने और ललित ने एक दूसरे की ओर अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। हमें भारत याद आ रहा था जहाँ ब्लॉक स्तर का नेता भी अपने साथ भारी-भरकम लवाजमा लेकर चलता है मानो रास्ते भर यह ऐलान कर रहा हो कि दूर हटो माबदौलत तशरीफ ला रहे हैं। जितना बड़ा नेता, उतना ही बड़ा कारवाँ, उतना ही बड़ा सुरक्षा इंतजाम और जनता को उतनी ही ज्यादा तकलीफ। श्रीमती मोनीक (Monique Agnes OHSAN BELLEPEAU, GOSK) की सादगी और सरलता स्व. लाल बहादुर शास्त्री की याद दिला रही थी।
संस्कृतियों का संतुलन
मॉरीशस बहु-सांस्कृतिक राष्ट्र है। भारतीयों के साथ-साथ अंग्रेज, फ्रांसीसी, अफ्रीकी और चीनी लोग भी हैं यहाँ पर। वह भारतीयता से अपने संबंधों को अहमियत देता है मगर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए सजग है। हिंदी कविताओं में 'पवित्र और महान मॉरीशस माँ' का जिक्र होता है। भारत के साथ आत्मीयता है, बिछुड़ने की कसक है लेकिन देशभक्ति मॉरीशस के लिए है। भारतवंशियों को यह संतुलन बनाना बखूबी आता है। बहरहाल, यहाँ भी ऐसे लोग हैं जो मॉरीशस को भारत और वहाँ की संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रखना चाहते हैं। वे जोर देकर कहेंगे कि मॉरीशस एशिया में नहीं बल्कि अफ्रीका में है और उसे उपमहाद्वीपीय संस्कृति के सांस्कृतिक हमले से बचाने की जरूरत है। ऐसे लोग भारत से आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक संबंध प्रगाढ़ करने की कोशिशों को भी संदेह की निगाह से देखते हैं। उन्हें डर है कि कहीं भारत से बड़ी संख्या में लोग आकर यहा बस जाएँ और कारोबार तथा नौकरियों पर कब्जा जमा लें। हालाँकि उनकी आशंकाएँ निराधार हैं क्योंकि मॉरीशस में बसने के नियम आसान नहीं हैं।
कोई भी देश उसके लोगों से बनता है और यह अस्वाभाविक नहीं है कि जहाँ जिस समुदाय के लोगों की संख्या अधिक होती है, जन-जीवन पर भी उसका प्रभाव अधिक दिखता है। ऐसा नहीं कि भारतवंशियों ने अफ्रीकी, फ्रांसीसी या अंग्रेज संस्कृति से दूरी बनाकर रखी हो। उन्होंने खुले दिल से सबसे कुछ न कुछ ग्रहण किया है। इसी से बन रही है यहाँ की मिली-जुली संस्कृति। इसका उदाहरण है मॉरीशसीय क्रियोल भाषा जिसका इस्तेमाल लगभग हर भारतवंशी आम बोलचाल में प्रमुखता के साथ करता है। देव वीरास्वामी जैसे लेखकों ने क्रियोल में साहित्यिक योगदान दिया है। भोजन में लंबी पावरोटी का अहम स्थान है, जो उन्होंने यूरोपीय लोगों से अपनाई है। रोटी-सब्जी की तुलना में यही पावरोटी यहाँ ज्यादा खाई जाती है। लेकिन वे रोटी-सब्जी और चावल भी डाइनिंग टेबल पर दिखते हैं। दाल-पूरी का जिक्र करना जरूरी है जो यहाँ का लोकप्रिय भोजन है। एक तरह से राष्ट्रीय भोजन। बिहार और उत्तर प्रदेश में खाई जाने वाली दाल-पूरी का मॉरीशसीय स्वरूप वाकई बहुत स्वादिष्ट है। इसे बनाने के लिए भी दक्षता चाहिए। आटे की बहुत पतली दो परतों के बीच दाल की एक महीन सी परत और साथ में स्वादिष्ट चटनियाँ। अलबत्ता, यहाँ की हरी चटनी को भारत की धनिए या पुदीने की चटनी समझकर ज्यादा न खा लें क्योंकि यह विशुद्ध मिर्च की चटनी हुआ करती है। और मॉरीशस की मिर्च... बाप रे बाप!
मॉरीशस की कवयित्री और टेलीविजन-रेडियो प्रस्तोता श्रीमती मधु गजाधर ने हमें भोजन के लिए आमंत्रित किया था। क्या ही सुखद अनुभव था! कभी उम्मीद नहीं की थी कि भारत से इतनी दूर विशुद्ध भारतीय भोजन की इतनी विविध और स्वादिष्ट किस्में चखने को मिल सकती हैं। मधु जी ने खुद भोजन तैयार किया था और उनकी मिलनसारिता के साथ-साथ पाक कला की भी दाद देनी पड़ेगी। भारत में भी इतने स्वादिष्ट गाजर के हलवे, खीर, दही-बड़ों, तरह-तरह की पूरियों, शाही पनीर आदि के रसास्वादन का अवसर काफी अरसे से नहीं मिला था।
जगह-जगह भारत की छाप
शिवरात्रि, गणेश चतुर्थी और दीवाली के साथ-साथ उगाड़ी जैसे भारतीय त्योहार मॉरीशस में खूब मनाए जाते हैं। ईसाइयों, मुस्लिमों और चीनियों के त्योहार भी सब मिलकर मनाते हैं। मॉरीशस में उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय, दोनों शैलियों के मंदिर खूब दिखते हैं। भले ही मंदिर का प्रधान देवता कोई भी हो, दर्जनों दूसरे देवताओं की मूर्तियाँ भी रहेंगी। ऐसा इसलिए ताकि हर आस्था के व्यक्ति को अपने आराध्य के दर्शन हो जाएँ। वैसे भारतवंशियों के घरों में भी मंदिर हैं- हनुमान जी के। वे भारत से हजारों किलोमीटर दूर, बने हर घर के संरक्षक जो हैं।
गंगा तलाव तो मॉरीशस के भारतीयों की अगाध श्रद्धा का केंद्र है। इसका लगभग वही महत्व है जितना भारत में गंगा का है। कुछ साल पहले गंगा से पानी लाकर यहाँ प्रवाहित भी किया गया था। गंगा तलाव क्या है, प्राकृतिक सौंदर्य से सुसज्जित मनोरम स्थल है। बहुत साफ-सुथरा, शांत और आनंददायक। वहाँ जाने वालों का स्वागत करती है, खुले आसमान तले स्थापित भगवान शिव की एक सुंदर, विशाल प्रतिमा। मूर्ति से आगे चलकर जब तालाब पर पहुँचते हैं तो दिखता है पास ही बना एक विशाल मंदिर। झील में हनुमान, गणेश, दुर्गा जैसे देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियाँ लगी हुई हैं। वहीं दिखते हैं भगवान बुद्ध और साई बाबा भी। महाशिवरात्रि धूमधाम से मनाई जाती है- किसी राष्ट्रीय त्योहार की तरह। उत्तर भारत की ही तरह यहाँ भी काँवड़ यात्राएं निकाली जाती हैं और मेले लगते हैं। हमारी कार्यशाला में हिस्सा लेने वाले सुरेश रामबर्न जी ने गंगा तलाव चालीसा भी लिखी है, जो उन्होंने हमें भेंट की।
धर्म-संस्कृति और समाज से इतर भी भारत का प्रभाव है। जैसे अशोक लैलेंड की बसें या फिर मारुति कारें। भारतीय स्टेट बैंक, जीवन बीमा निगम (एलआईसी) आदि के दफ्तर भी हैं तो अपोलो और फोर्टिस जैसे अस्पताल भी। सड़क किनारे इंडियन ऑयल के पेट्रोल पंप भी दिखाई देते हैं। मॉरीशस को पेट्रोलियम की सप्लाई करने में भारत की बड़ी भूमिका है और मॉरीशस एअरलाइंस का भी एअर इंडिया के साथ खास किस्म का करार है। बड़े दफ्तर ही क्यों, सड़क के किनारे घूमने निकल जाइए तब भी भारत की छाप खूब दिखेगी। मंदिर के कार्यक्रम के लिए चंदा इकट्ठे करते युवक, गाँवों की चौपाल पर ताश या शतरंज खेलते लोग, यदा-कदा दिख जाने वाले ओम् के निशान और कहीं-कहीं भारतीय तिरंगा भी। दुकानों पर भारतीय नाम और उनके भीतर भारतीय परिधान (कुर्ते, साड़ियाँ, लहंगे, शेरवानियाँ, जोधपुरी कोट आदि) खूब दिखते हैं। अगर आपसी बातचीत में लोग क्रियोल न बोल रहे हों तो आपको लगेगा ही नहीं कि यह भारत नहीं है।