"दूसरे धर्मों का तो पता नहीं पर मैंने अपने धर्म में इतने दंभी, स्वार्थी और बेवकूफ लोग देखे हैं कि मुझे पछतावा है कि मैं क्यों जैन पैदा हुआ? अब जैन में तो हर चीज करने में पाप लगता है.... कुछ जैन संप्रदाय मूर्ति पूजा करते हैं तो कुछ मूर्तिपूजा के खिलाफ हैं। अब एक जैन मंदिर में जाकर लाइट चालू करके, माइक पे वंदना करके यह संतोष व्यक्त करते हैं कि मुझे स्वर्ग मिलेगा तो कुछ 'स्थानकवासी' जैन मानते हैं कि बिजली चालू करने से पाप लगता है और मूर्ति बनाने से बहुत छोटे जीव मरते हैं इसलिए पाप लगता है। यहां दोनों संप्रदाय एक ही भगवान की पूजा करेंगे लेकिन अलग ढंग से। फिर आठ दिन भूखे रहकर यह मान लेंगे कि उनका पाप मिट गया। यानी आपने तीन खून किए हों या लाखों लोगों के रुपए लूटे हों फिर भी कुछ दिन भूखे रहने से पाप मिट जाएंगे।" (तत्वज्ञानी के हथौड़े)।
"मैं अपने आपको मुसलमान नहीं मानता मगर मैं अपने मां-बाप की बहुत इज्जत करता हूं, सिर्फ और सिर्फ उनको खुश करने के लिए उनके सामने मुसलमान होने का नाटक करता हूं, वरना मुझे अपने आपको मुसलमान करते हुए बहुत गुस्सा आता है। मैं एक आम इन्सान हूं, मेरे दिल में वही है जो दूसरों में है। मैं झूठ, फरेब, मानदारी, बेईमानी, अच्छी और बुरी आदतें, कभी शरीफ और कभी कमीना बन जाता हूं, कभी किसी की मदद करता हूं और कभी नहीं- ये बातें हर इंसान में कॉमन हैं। एक दिन अब्बा ने अम्मी से गुस्से में आकर पूछा- क्या यह हमारा ही बच्चा है? तो वो हमारी तरह मुसलमान क्यों नहीं? कयामत के दिन अल्लाह मुझसे पूछेगा कि तेरे एक बेटे को मुसलमान क्यों नहीं बनाया तो मैं क्या जवाब दूं? पहले तो अब्बा-अम्मी ने मुझे प्यार से मनाया, फिर खूब मारा-पीटा कि हमारी तरह पक्का मुसलमान बने... यहां दुबई में दुनिया भर के देशों के लोग रहते हैं और ज्यादातर मुसलमान। मुझे शुरू से मुसलमान बनना पसंद नहीं और यहां आकर सभी लोगों को करीब से देखने और उनके साथ रहने के बाद तो अब इस्लाम से और बेजारी होने लगी है। मैं यह हरगिज नहीं कहता कि इस्लाम गलत है, इस्लाम तो अपनी जगह ठीक है। मैं मुसलमानों और उनके विचारों की बात कर रहा हूं।" (नई बातें, नई सोच)।
ये दोनों टिप्पणियां दो अलग-अलग लोगों ने लिखी हैं। दो ऐसे साहसिक युवकों ने, जो प्रगतिशीलता का आवरण ओढ़े किंतु भीतर से रूढ़िवादिता को हृदयंगम कर परंपराओं और मान्यताओं को बिना शर्त ढोते रहने वाले हमारे समाज की संकीर्णताओं के भीतर घुटन महसूस करते हैं। क्या इस तरह की बेखौफ, निश्छलतापूर्ण और ईमानदार टिप्पणियां किसी पत्र-पत्रिका में प्रकाशित की जा सकती हैं? क्या क्रुद्ध समाजों की उग्रतम प्रतिक्रियाओं से भरे इस दौर में ऐसे प्रतिरोधी स्वर किसी दूरदर्शन या आकाशवाणी से प्रसारित हो सकते हैं? क्या कोई धार्मिक, सामाजिक या राजनैतिक मंच इस ईमानदार किंतु विद्रोही आक्रोश की अभिव्यक्ति का मंच बन सकता है? ऐसा संभवत: सिर्फ एक मंच है जिसमें अभिव्यक्ति किन्हीं सीमाओं, वर्जनाओं, आचार संहिताओं या अनुशासन में कैद नहीं है। वह मंच है इंटरनेट पर तेजी से लोकप्रिय हो रही ब्लॉगिंग का।
औपचारिकता के तौर पर दोहरा दूं कि ब्लॉगिंग शब्द अंग्रेजी के 'वेब लॉग' (इंटरनेट आधारित टिप्पणियां) से बना है, जिसका तात्पर्य ऐसी डायरी से है जो किसी नोटबुक में नहीं बल्कि इंटरनेट पर रखी जाती है। पारंपरिक डायरी के विपरीत वेब आधारित ये डायरियां (ब्लॉग) सिर्फ अपने तक सीमित रखने के लिए नहीं हैं बल्कि सार्वजनिक पठन-पाठन के लिए उपलब्ध हैं। चूंकि आपकी इस डायरी को विश्व भर में कोई भी पढ़ सकता है इसलिए यह आपको अपने विचारों, अनुभवों या रचनात्मकता को दूसरों तक पहुंचाने का जरिया प्रदान करती है और सबकी सामूहिक डायरियों (ब्लॉगमंडल) को मिलाकर देखें तो यह निर्विवाद रूप से विश्व का सबसे बड़ा जनसंचार तंत्र बन चुका है। उसने कहीं पत्रिका का रूप ले लिया है, कहीं अखबार का, कहीं पोर्टल का तो कहीं ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा के मंच का। उसकी विषय वस्तु की भी कोई सीमा नहीं। कहीं संगीत उपलब्ध है, कहीं कार्टून, कहीं चित्र तो कहीं वीडियो। कहीं पर लोग मिल-जुलकर पुस्तकें लिख रहे हैं तो कहीं तकनीकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। ब्लॉग मंडल का उपयोग कहीं भाषाएं सिखाने के लिए हो रहा है तो कहीं अमर साहित्य को ऑनलाइन पाठकों को उपलब्ध कराने में। इंटरनेट पर मौजूद अनंत ज्ञानकोष में ब्लॉग के जरिए थोड़ा-थोड़ा व्यक्तिगत योगदान देने की लाजवाब कोशिश हो रही है।
सीमाओं से मुक्त अभिव्यक्ति
ब्लॉगिंग है एक ऐसा माध्यम जिसमें लेखक ही संपादक है और वही प्रकाशक भी। ऐसा माध्यम जो भौगोलिक सीमाओं से पूरी तरह मुक्त, और राजनैतिक-सामाजिक नियंत्रण से लगभग स्वतंत्र है। जहां अभिव्यक्ति न कायदों में बंधने को मजबूर है, न अल कायदा से डरने को। इस माध्यम में न समय की कोई समस्या है, न सर्कुलेशन की कमी, न महीने भर तक पाठकीय प्रतिक्रियाओं का इंतजार करने की जरूरत। त्वरित अभिव्यक्ति, त्वरित प्रसारण, त्वरित प्रतिक्रिया और विश्वव्यापी प्रसार के चलते ब्लॉगिंग अद्वितीय रूप से लोकप्रिय होकर करोड़ों ब्लॉगों तक पहुँच गई है। समूचे ब्लॉगमंडल का आकार हर छह महीने में दोगुना हो जाता है।
आइए फिर से अभिव्यक्ति के मुद्दे पर लौटें, जहां से हमने बात शुरू की थी। हालांकि ब्लॉगिंग की ओर आकर्षित होने के और भी कई कारण हैं। लेकिन अधिकांश विशुद्ध, गैर-व्यावसायिक ब्लॉगरों ने अपने विचारों और रचनात्मकता की अभिव्यक्ति के लिए ही इस मंच को अपनाया। जिन करोड़ों लोगों के पास आज अपने ब्लॉग हैं, उनमें से कितने पारंपरिक जनसंचार माध्यमों में स्थान पा सकते थे? स्थान की सीमा, रचनाओं के स्तर, मौलिकता, रचनात्मकता, महत्व, सामयिकता आदि कितने ही अनुशासनों में निबद्ध जनसंचार माध्यमों से हर व्यक्ति के विचारों को स्थान देने की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती। लेकिन ब्लॉगिंग की दुनिया पूरी तरह स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और मनमौजी किस्म की रचनात्मक दुनिया है। वहां आपकी 'भई आज कुछ नहीं लिखेंगे' नामक छोटी सी टिप्पणी का भी उतना ही स्वागत है जितना कि जीतेन्द्र चौधरी की ओर से वर्डप्रेस पर डाली गई सम्पूर्ण रामचरित मानस का। 'भड़ास' नामक सामूहिक ब्लॉग के सूत्र वाक्य से यह बात स्पष्ट हो जाती है- कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिए... मन हल्का हो जाएगा..।
चौपटस्वामी नामक ब्लॉगर की लिखी यह टिप्पणी पढ़िए- "(हमारे यहां) धनिया में लीद मिलाने और कालीमिर्च में पपीते के बीज मिलाने को सामाजिक अनुमोदन है। रिश्वत लेना और देना सामान्य और स्वीकृत परंपरा है और उसे लगभग रीति-रिवाज के रूप में मान्यता प्राप्त है। कन्या-भ्रूण की हत्या यहां रोजमर्रा का कर्म है और अपने से कमजोर को लतियाना अघोषित धर्म है। गणेशजी को दूध पिलाना हमारी धार्मिक आस्था है। हमारा लड़का हमें गरियाते और जुतियाते हुए भी श्रवणकुमार है, पर पड़ोसी का ठीक-ठाक सा लड़का भी बिलावजह दुष्ट और बदकार है।" यानी कि सौ फीसदी अभिव्यक्ति की एक सौ एक फीसदी आजादी!
वरिष्ठ ब्लॉगर अनूप शुक्ला (फुरसतिया) कहते हैं- "अभिव्यक्ति की बेचैनी ब्लॉगिंग का प्राण तत्व है और तात्कालिकता इसकी मूल प्रवृत्ति है। विचारों की सहज अभिव्यक्ति ही ब्लॉग की ताकत है, यही इसकी कमजोरी भी। यही इसकी सामर्थ्य है, यही इसकी सीमा भी। सहजता जहां खत्म हुई वहां फिर अभिव्यक्ति ब्लॉगिंग से दूर होती जाएगी।"
जो चाहें, लिखें और अगर चाहते हैं कि इसे दूसरे लोग भी पढ़ें तो ब्लॉग पर डाल दें। किसी को जंचेगा तो पढ़ लेगा वरना आगे बढ़ जाएगा। ब्लॉगिंग वस्तुत: एक लोकतांत्रिक माध्यम है। यहां कोई न लिखने के लिए मजबूर है, न पढ़ने के लिए। जो अच्छा लिखते हैं, उनके ठिकानों पर स्वत: भीड़ हो जाती है, उनके ब्लॉगों में टिप्पणियों की बहार आ जाती है। ऐसे कई ब्लॉग हीरो ब्लॉगिंग की दुनिया ने दिए हैं जो सिर्फ अपने लेखों, भाषा या रचनात्मकता के लिए ही नहीं, तकनीकी मार्गदर्शन देने (गैर-अंग्रेजी ब्लॉगरों को इसकी जरूरत पड़ती ही है) और नए ब्लॉगरों व ब्लॉग परियोजनाओं को प्रोत्साहित करने के लिए भी जाने जाते हैं।
ब्लॉग विश्व के चर्चित लोग
दुनिया के विख्यात ब्लॉगरों में एंड्र्यू सलीवान (एंड्र्यूसलीवान.कॉम), रॉन गंजबर्गर (पोलिटिक्स१.कॉम), ग्लेन रोनाल्ड (इन्स्टापंडित.कॉम), डंकन ब्लैक, पीटर रोजास, जेनी जार्डिन, बेन ट्रोट, जोनाथन श्वार्ट्ज, जेसन गोल्डमैन, रॉबर्ट स्कोबल, मैट ड्रज (ड्रजरिपोर्ट.कॉम) आदि शामिल हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को महाभियोग की हद तक ले जाने वाले मोनिका लुइन्स्की प्रकरण का पर्दाफाश मैट ड्रज ने ही अपने ब्लॉग पर किया था। चीनी अभिनेत्री जू जिंगले का ब्लॉग संभवत: दुनिया का सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग है जिसे पांच करोड़ से भी अधिक बार पढ़ा जा चुका है। ब्लॉगिंग का चस्का बहुत सी विख्यात हस्तियों को भी लगा है जिनमें टेनिस सुंदरी अन्ना कोर्निकोवा, हॉलीवुड अभिनेत्री पामेला एंडरसन, गायिका ब्रिटनी स्पीयर्स, अभिनेत्री व सुपरमॉडल कर्टनी लव, फिल्म निर्देशक व अभिनेता केविन स्मिथ आदि शामिल हैं। हमारे देश में
भारत के कई अंग्रेजी ब्लॉग काफी लोकप्रिय हो गए हैं जिनमें गौरव सबनीस का वान्टेड प्वाइंट, अमित वर्मा का इंडिया अनकट, रश्मि बंसल का यूथ सिटी, अमित अग्रवाल का डिजिटल इनिस्परेशन, दीना मेहता का दीनामेहता.कॉम आदि प्रमुख हैं।
फिल्म अभिनेता आमिर खान (लगानडीवीडी.कॉम), जॉन अब्राहम, बिपासा बसु (बिपासाबसुनेट.कॉम), राहुल बोस, राहुल खन्ना, शेखर कपूर, सुचित्रा कृष्णमूर्ति, अनुपम खेर, कवि अशोक चक्रधर, रेडिफ चेयरमैन अजीत बालाकृष्णन, इंडियावर्ल्ड.कॉम बनाकर उसे छह सौ करोड़ रुपए में सिफी.कॉम को बेचने वाले राजेश जैन, वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई , नौकरी.कॉम के सी ई ओ संजीव बीखचंदानी आदि भी सक्रिय ब्लॉगर हैं। आमिर खान के ब्लॉग पर तो पिछली पोस्ट के जवाब में सत्रह सौ पाठकों की टिप्पणियां दर्ज हैं!
अगर आपने झटपट ब्लॉग बनाकर फटाफट धन कमाने की योजना बना ली हो तो जान लीजिए कि यह कोई आसान काम नहीं है। अपने ब्लॉग के लिए अमित अग्रवाल ही रोजाना सैंकड़ों ब्लॉगों, उतनी ही आरएसएस फीड (ब्लॉगों के लेखों को अपेक्षाकृत आसान फॉरमेट में कंप्यूटर या इंटरनेट ब्राउजर पर पढ़ने की सुविधा) और दर्जनों वेबसाइटों का अध्ययन करते हैं। रोजाना बारह से चौदह घंटे तक काम करना, पचासों मेल संदेशों का जवाब देना और सर्च इंजनों को खंगालना उनके दैनिक कर्म में शामिल है। लेकिन फिर भी, कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है।
हिंदी ब्लॉगिंग के प्रमुख हस्ताक्षरों में जीतेन्द्र चौधरी, अनूप शुक्ला, आलोक कुमार (जिन्होंने पहला हिंदी ब्लॉग लिखा और उसके लिए 'चिट्ठा' शब्द का प्रयोग किया), देवाशीष, रवि रतलामी, पंकज बेंगानी, समीर लाल, रमण कौल, मैथिलीजी, जगदीश भाटिया, मसिजीवी, पंकज नरूला, प्रत्यक्षा, अविनाश, अनुनाद सिंह, शशि सिंह, सृजन शिल्पी, ई-स्वामी, सुनील दीपक, संजय बेंगानी आदि के नाम लिए जा सकते हैं। जयप्रकाश मानस, नीरज दीवान, श्रीश बेंजवाल शर्मा, अनूप भार्गव, शास्त्री जेसी फिलिप, हरिराम, आलोक पुराणिक, ज्ञानदत्त पांडे, रवीश कुमार, अभय तिवारी, नीलिमा, अनामदास, काकेश, अतुल अरोड़ा, घुघुती बासुती, संजय तिवारी, सुरेश चिपलूनकर, तरुण जोशी, अफलातून जैसे अन्य उत्साही लोग भी ब्लॉग जगत पर पूरी गंभीरता और नियम के साथ सक्रिय हैं और इंटरनेट पर हिंदी विषय वस्तु को समृद्ध बनाने में लगे हैं। अगर आप ब्लॉगों की दुनिया से अनजान हैं, तो संभवत: ये नाम भी आपने नहीं सुने होंगे। लेकिन अगर आप ब्लॉगजगत में सावन की तेज हवा में उड़ती पतंग का सा फर्राटा भी मार लें तो इन सबकी अनूठी रचनात्मकता, हिंदी प्रेम और ब्लॉगी जुनून का लोहा मानने पर मजबूर हो जाएंगे। इस लेख के शुरू में जिन दो ब्लॉगों पर लिखी टिप्पणियां उद्धृत की गई हैं, उन्हें रवि कामदार और शुएब संचालित करते हैं। प्रसंगवश, इसी ब्लॉगविश्व में मीडिया की आत्मालोचना पर केंद्रित 'वाह मीडिया' और 'मतांतर' नामक ब्लॉगों के माध्यम से मेरी भी उपस्थिति है।
ब्लॉगिंग में है कुछ अलग बात!
अंग्रेजी में तो ब्लॉगिंग की उम्र दस वर्ष हो गई है। इन दस वर्षों में संचार और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनने के साथ-साथ उसने सामूहिकता और सामुदायिकता पर आधारित अनेकों नई विधाओं को जन्म दिया है। दुनिया का पहला ब्लॉग किसने बनाया, इस बारे में मतैक्य नहीं है। लेकिन इस बारे में कोई विवाद नहीं है कि ब्लॉगिंग की शुरूआत १९९७ में हुई । अप्रैल १९९७ में न्यूयॉर्क के डेव वाइनर ने स्क्रिप्टिंग न्यूज नामक एक वेबसाइट शुरू की जिसने ब्लॉगिंग की अवधारणा को स्पष्ट किया और लोगों को अपने विचार इंटरनेट पर प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया। दिसंबर १९९७ में जोर्न बार्गर ने रोबोटविसडम.कॉम की शुरूआत की और पहली बार इसे 'वेब लॉग' का नाम दिया। पीटरमी.कॉम के पीटर मरहोल्ज ने वेबलॉग के स्थान पर उसके छोटे रूप 'ब्लॉग' का प्रयोग किया। तब से इंटरनेट पर ब्लॉगों की जो तेज हवा बही, उसने पहले आंधी और अब तूफान का रूप ले लिया है।
हालांकि ब्लॉगिंग के आगमन के पहले से ही अभिव्यक्ति के नि:शुल्क मंच इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। नब्बे के दशक के शुरू में ही जियोसिटीज.कॉम, ट्राइपोड.कॉम, ८के.कॉम, होमपेज.कॉम, एंजेलफायर.कॉम, गो.कॉम आदि ने आम लोगों को अपने निजी इंटरनेट होमपेज बनाने की सुविधा दी थी और इनमें से अधिकांश आज भी सक्रिय हैं। उन पर लाखों लोगों ने अपनी वेबसाइटें बनाई भी लेकिन उन्हें ब्लॉगिंग की तर्ज पर अकूत लोकप्रियता नहीं मिली क्योंकि वेबसाइट बनाने के लिए थोड़ा-बहुत तकनीकी ज्ञान आवश्यक है। दूसरी तरफ ब्लॉग का निर्माण और संचालन लगभग मेल पाने-भेजने जितना ही आसान है। ब्लॉगर, वर्डप्रेस, माईस्पेस, लाइवजर्नल, ब्लॉग.कॉम, टाइपपैड, पिटास, रेडियो यूजरलैंड आदि पर ब्लॉग बनाना और टिप्पणियां पोस्ट करना बहुत आसान है। सरल, तेज, विश्वव्यापी, विशाल, नि:शुल्क और इंटर-एक्टिव होने के साथ-साथ कोई संपादकीय, कानूनी या संस्थागत नियंत्रण न होना ब्लॉगिंग की बुनियादी शक्तियां (और कमजोरी भी) हैं जिन्होंने इसे इंटरनेट आधारित अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों की तुलना में अधिक लोकप्रिय बनाया है।
ब्लॉगिंग विश्व ने उन लोगों की स्मृतियों को भी जीवित रखा है जो सरकारी दमनचक्र, समाजविरोधी तत्वों के जुल्म या फिर आतंकवादी कार्रवाइयों के शिकार हुए। चीन में भले ही थ्येनआनमन चौक पर हुई अमानवीय सैन्य कार्रवाई के खिलाफ मुंह खोलना बहुत बड़ा अपराध हो, पर ब्लॉगिंग की दुनिया में ऐसी रोकटोक नहीं। 'यान्स ग्लटर' नामक ब्लॉग का संचालन करने वाली यान शाम शैकलटन १९८९ में थ्येनआनमन चौक पर हुए सैनिक नरसंहार में मारे गए युवकों के प्रति अपनी भावनाओं को इस तरह व्यक्त करती हैं-
'मैं भूलूंगी नहीं। मैं आपको हमेशा याद रखने का वादा करती हूं। मैं ऐसा दोबारा नहीं होने दूंगी। मैं पूरी दुनिया को आपकी, थ्येनआनमन चौक के छात्रों की याद दिलाती रहूंगी। मेरे बड़े भाइयो और बहनों!'
लोकतंत्र की आवाज़
दमन के विरुद्ध विद्रोह और लोकतंत्र की चाहत को भी ब्लॉगिंग ने स्वर दिए हैं। बहरीन में शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करते लोगों के सरकारी दमन को वहीं के एक ब्लॉगर 'चनाद बहरीनी' (ब्लॉगर का छद्म नाम) ने अपने चित्रों में कैद किया और ब्लॉग के माध्यम से दुनिया भर को उसकी जानकारी दी। कुछ वर्ष पहले अमेरिकी सीनेटर ट्रेन्ट लोट ने १९४८ के राष्ट्रपति चुनाव में हैरी ट्रूमैन के प्रतिद्वंद्वी और रंगभेद समर्थक उम्मीदवार स्ट्रॉम थरमंड का समर्थन किया। मीडिया ने इस पर खास ध्यान नहीं दिया तो ब्लॉगर समुदाय ने जोर-शोर से यह मुद्दा उठाया और सीनेटर से इस्तीफा दिलवाकर ही दम लिया। इस घटना में ब्लॉगरों ने मीडिया के वैकल्पिक स्वरूप के रूप में अपनी उपयोगिता सिद्ध की।
यही बात इराक युद्ध के दौरान भी 'बगदाद ब्लॉगर' के नाम से प्रसिद्ध एक गुमनाम ब्लॉगर ने 'सलाम पैक्स' के नाम से लिखे अपने ब्लॉग के माध्यम से दिखाई। वह इराक युद्ध की विनाशलीला का आंखों देखा हाल उपलब्ध कराता रहा और उसकी टिप्पणियों का दुनिया भर के मीडिया ने उपयोग किया। ब्लॉगिंग को लोकप्रिय बनाने में उसकी अहम भूमिका मानी जाती है। इराक युद्ध के दौरान जब बीबीसी और वॉयस ऑफ अमेरिका में इस ब्लॉगर पर केंद्रित कार्यक्रमों का प्रसारण किया गया तो उसके पिता को पहली बार अहसास हुआ कि संभवत: ये कार्यक्रम मेरे शर्मीले पुत्र के बारे में हैं जो चुपचाप कमरे में बैठकर इंटरनेट पर कुछ करता रहता है। उन्हें लगा कि सद्दाम हुसैन की खुफिया एजेंसियों को पता चलने वाला है और वे पक्के तौर पर बहुत बड़े संकट में फंसने जा रहे हैं। लेकिन सौभाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ और सलाम का नाम ब्लॉगिंग के इतिहास में दर्ज हो गया। (संयोगवश, सलाम ने इराक युद्ध के बाद लंदन के 'गार्जियन' अखबार में कॉलम भी लिखा)।
ब्लॉग लेखन आम तौर पर बहुत गंभीर लेखन नहीं माना जाता लेकिन ड्रज रिपोर्ट, बगदाद ब्लॉगर आदि की जिम्मेदाराना भूमिकाओं और ट्रेन्ट लोट के इस्तीफे के बाद समाचार माध्यम के रूप में भी उसकी साख और विश्वसनीयता में वृद्धि हुई है। पिछले अप्रैल माह में अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय में अनजान हमलावरों ने अंधाधुंध फायरिंग कर कई छात्रों को मार डाला तब ब्लॉगर अनुराग मिश्रा ने हमारे अपने 'इंडिया टीवी' के लिए रिपोर्टिंग की। इंडिया टीवी से जुड़े नीरज दीवान, जो स्वयं 'कीबोर्ड के सिपाही' नामक ब्लॉग चलाते हैं, कहते हैं- "उस घटना पर किसी भारतीय द्वारा अमेरिका से दी जा रही वह पहली जानकारी थी। अनुराग भाषा, शैली में पूर्णत: सक्षम और विश्वस्त ब्लॉगर हैं। वे उसी विश्वविद्यालय के छात्र भी हैं। उस वक्त मेरे पास उनसे बेहतर कोई और विकल्प नहीं था। अनुराग ने जन-पत्रकार की भूमिका बखूबी निभाई ।"
हिंसा व आतंक के खिलाफ और लोकतंत्र के पक्ष में खड़े होने वाले ये गुमनाम सिपाही स्वयं भी लोकतंत्र विरोधियों के दमन का शिकार होते रहे हैं। ईरान सरकार ने अराश सिगारची नामक ब्लॉगर को उसकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति से खफा होकर १४ साल के लिए जेल में डाल दिया है। अनार्कएंजेल नामक एक ब्लॉगर के खिलाफ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने मौत का फतवा भी जारी किया है। सिंगापुर में दो चीनी ब्लॉगरों को स्थानीय कानूनों की आलोचना करने ओर मुसलमानों के खिलाफ टिप्पणियां करने के लिए जेल में डाल दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र से जुड़े एक राजनयिक को उसके ब्लॉग में लिखी टिप्पणियों के कारण सूडान ने तीन दिन में देश छोड़ने का आदेश दिया था। यानी चुनौतियों की कोई कमी भी नहीं।
(यह आलेख प्रसिद्ध हिंदी मासिक 'कादम्बिनी' में सन् 2007 में 'ब्लॉग हो तो बात बने' शीर्षक से प्रकाशित हुआ था और हिंदी ब्लॉगिंग की शुरूआत के उस दौर में खासा चर्चित रहा था। इसे पढ़कर बड़ी संख्या में हिंदी ब्लॉग बनाए गए थे। संदर्भ के तौर पर मूल आलेख दो भागों में प्रस्तुत है - बालेन्दु)।